Cheaper Medicine: आम जनता को बड़ी राहत, दवाओं के घटने वाले हैं दाम
नई दिल्ली :- पेरासिटामोल वह दवा है जिसका नाम भारत में हर कोई जानता है. वैसे आप इसे अलग-अलग ब्रांड के नामों से भी जानते हैं, परंतु बुखार से लेकर बदन दर्द तक में यह दवा काम आती है. अब इस दवा के दाम भी कम होने वाले हैं. भारत में दवाओं के दाम NPPA (National Pharmaceutical Pricing Authority) द्वारा तय किए जाते हैं. NPPA की तरफ से 127 दवाओं के दाम कम किए गए हैं. कम कीमत में प्रिंट होने वाली दवाई जनवरी के Second Week तक Market में पहुंच जाएगी. सबसे पहले आपके लिए यह जानना जरूरी है कि दवा की कीमत आज कितनी है और यह कितनी कम होने वाली है. पेरासिटामोल की कीमत आधी हो सकती है.
इन दवाओं की कीमत हुई कम
- पैरासिटामोल 650 MG: 2 रुपए 30 पैसे की एक टैबलेट नई कीमत: 1 रुपए 80 पैसे की एक टैबलेट
- एमोक्सिसिलिन COMBO: 22 रुपए एक टैबलेट, नई कीमत: 16 रुपए एक टैबलेट
- मॉक्सीफ्लोक्सीन 400 MG: 31 रुपए एक टैबलेट, नई कीमत: 21 रुपए एक टैबलेट
इस प्रकार तय होते हैं भारत में दवाइयों के Price
भारत में दवाओं के दाम तय करने के फार्मूले को बदलने पर भी विचार विमर्श किया जा रहा है. इसके लिए भारत में 4 संस्थाओं को Study करने का काम सौंपा गया है. भारत में दवाओं के दाम तय करने के लिए क्या फार्मूला लागू होना चाहिए. अब जो दवाई सरकार के Price Control Program के तहत नहीं आती. उन दवाओं के दामों पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं होता, सिवाय इसके की 1 साल में 10% से ज्यादा कीमती नहीं बढ़ाई जा सकती. साल 2013 तक भारत में दवाओं के दाम लागत और मुनाफा जोड़कर तय किए जाते थे, परंतु अब दवाओं के दाम उसकी Cost से कोई भी लेना देना नहीं रहा है.
इन दवाओं की कीमतों पर नहीं है सरकार का Control
DCPO के तहत ना आने वाली दवाओं पर निर्माता कंपनी की तरफ से खुद ही Price Decide किया जाता है. यदि कंपनी चाहे तो 10 रूपये में बनने वाली दवा की कीमत 1000 रूपये भी रख सकती है. फिलहाल सरकार केवल 886 फॉर्मूलेशन से बनने वाली 1817 दवाओं के दामों पर लगाम लगा पा रही है. देश में इस समय 20000 फार्मा कंपनियां काम कर रही है. कुछ दवाओं के दाम में मार्जिन 2 गुना से लेकर 1000 गुना तक है. जब बाजार की दवाओं की तुलना जन औषधि स्टोर पर मिलने वाली दवाओं से की गई, तो पता चला कि दवाओं की कीमत कितनी कम हो सकती है. जन औषधि स्टोर चला रहे अनुपम खन्ना का मानना है कि जेनरिक दवाओं पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है और अब लोगों की जेब पर भार भी काफी कम हो रहा है.
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